समय चक्र

रोज उगता रहा, रोज ढलता रहा।
रेत की तरह अक्सर, फिसलता रहा।
पर रुका ना कभी, ये किसी मोड़ पे,
यह समय चक्र है, यूं ही चलता रहा।
✍️विपिन कुमार शर्मा®️

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