दर्द मर्द को भी होता, पर देता नहीं दिखाई।
खामोशी से आँसू पीना, है उसकी चतुराई।।
कौन जानता, वह रातों को कितना सो पाता है।
नहीं किसी को पता, स्वं में कितना खो पाता है।।
चेहरे पर मुस्कान, मगर दिल में पीड़ा होती है।
आंखों से अहसास नहीं, पर हर धड़कन रोती है।।
घर से ले परिवार तलक सबको खुशियां देता है।
बदले में सब तिरस्कार खुद हंसकर सह लेता है।।
पत्नी-बच्चे क्या, पीड़ा वह नहीं किसी से कहता।
अंतर्मन से धीरे धीरे हर पल घुटता रहता।
यही घुटन एक रोज मौत के सम्मुख ला देती है।
और बेचारे मर्द को गहरी नींद सुला देती है।।
सबके साधक के जीवन में है कितनी तन्हाई।
दर्द मर्द को भी होता, पर देता नहीं दिखाई।
-विपिन कुमार शर्मा, रामपुर