नागफनी से पथ पर चलकर आधा जीवन बीत गया।
कभी लगा मैं हार गया हूं, कभी लगा मैं जीत गया।।
आधा जीवन बीत गया…..
सपनों को बुनते-बुनते कब जाने अपने छूट गए।
जोड़े से भी नहीं जुड़े, कुछ ऐसे रिश्ते टूट गए।।
नम आंखों में रातें गुजरीं, चिंता में दिन बीत गया।
कभी लगा मैं हार गया हूं, कभी लगा मैं जीत गया।।
नागफनी से पथ पर चलकर…..
पांव बेंचकर सफर खरीदा, फिर भी मंजिल नहीं मिली।
दिल की बंजर सी भूमि पर सुख की बगिया नहीं खिली।।
पलकों तले दबाकर आंसू, हंसकर जीवन बीत गया।
कभी लगा मैं हार गया हूं, कभी लगा मैं जीत गया।।
नागफनी से पथ पर चलकर…..
वक्त के सांचे में खुद को हम आज तलक न ढाल सके।
नजर झुकाकर, बेंच आत्मा, हम खुद को न पाल सके।।
कभी समय और कभी मैं आगे, कुछ यूं जीवन बीत गया।
कभी लगा मैं हार गया हूं, कभी लगा मैं जीत गया।।
नागफनी से पथ पर चलकर…..
अब उम्मीदें टूट चुकी हूं, अब हर गम को सह लेंगे।
जैसा राम रखेंगे हमको, अब हम वैसे रह लेंगे।।
जेठ की तपती दोपहरी हो, या फिर सावन, बीत गया।
कभी लगा मैं हार गया हूं, कभी लगा मैं जीत गया।।
नागफनी से पथ पर चलकर…..
-विपिन कुमार शर्मा
रामपुर