दौलत-ए-ग़म हैं, इन्हें ऐसे लुटाया न करो।
बेसबब अश्क कभी अपने बहाया न करो।।
कौन जज़्बात समझता है किसी के भी यहां।
बात हर एक को तुम दिल की बताया न करो।।
हर ख़ुशी मिलती है उनकी ही दुआओं के सबब।
दिल को मां -बाप के तुम अपने दुखाया न करो।।
मांगना जो भी हो मांगों वो ख़ुदा से ही फ़क़त।
सर को अपने यूं हरिक दर पे झुकाया न करो।।
एक दिन छँटना है बादल भी ग़मों का ये विपिन।
हौसले अपने किसी तौर डिगाया न करो।।
-विपिन शर्मा✍️