दिन बुरे हों, या हों अच्छे, वो ढल ही जाएंगे।यकीन मानिए, इक दिन बदल ही जाएंगे।।…
Category: गजल
बदलते मौसम की तरह रिश्ते
बदलते मौसम की तरह रिश्ते, हरेक को अब सता रहे हैं।नहीं गिला-शिकवा दुश्मनों से, सितम तो…
बड़ा शातिर है पड़ोसी वो करे भी तो क्या!
टूटने का महज मंजर दिखाई देता है!नहीं महफूज अब ये घर दिखाई देता है!!मैं कब तलक…
रंजो-गम अपना, छुपाना आ गया है।
रंजो-गम अपना, छुपाना आ गया है।हां, मुझे भी मुस्कुराना आ गया है।। अब न रुसवा कर…
बैर आपस के मिटाना चाहता हूँ।
बैर आपस के मिटाना चाहता हूँ।इक नई दुनिया बसाना चाहता हूँ।। खिल सके हर इक कली…
गजल – तलब उठी है, फिर खून से नहाने की।
तलब उठी है, फिर खून से नहाने की।होने लगी है तैयारी, नए बहाने की।। जहर मजहब…
गजल – ठोंकरें खाके जो राहों में संभल जाते हैं।
ठोंकरें खाके जो राहों में संभल जाते हैं।ऐसे ही लोग बहुत दूर निकल जाते हैं।। सैंकड़ों…