जिंदगी
भूख से, प्यास से और एहसास से,
जिंदगी रोज ही जंग लड़ती रही।
लड़खड़ाई मगर फिर संभलती रही,
हर सुबह-शाम आगे ही बढ़ती रही।।
सिर्फ हम ही नहीं, आप भी तो सदा
आंख मलते हुए स्वप्न बुनते रहे।
नागफनी के भले ही थे जंगल मगर,
उन वनों में भी हम पुष्प चुनते रहे।।
सिर्फ अपने लिए गर जिए, क्या जिए,
इसी सिद्धांत पर आगे बढ़ते रहे।
कर्मरूपी सुमन से सुवासित हुए,
दूसरों को सुगंधित भी करते रहे।।
खोलकर पर सदा आत्म विश्वास के,
आस हर एक परवान चढ़ती रही।
लड़खड़ाई मगर फिर संभलती रही,
हर सुबह-शाम आगे ही बढ़ती रही।।
हाथ की रेख पर न भरोसा किया,
धागे बांधे नहीं बरगदों के तले।
जानते थे अंधेरा मिटेगा नहीं,
गर जलाते रहे मन्नतों के दिए।।
थे थके ही भले पर कदम न रुके,
राह के पत्थरों से ही लड़ते रहे।
था पता कर्म निष्फल न होगा कभी,
इसलिए कर्मपथ पर ही चलते रहे।।
हर दिवस भास्कर की तरह जिंदगी,
कभी उगती रही और ढलती रही।
लड़खड़ाई मगर फिर संभलती रही,
हर सुबह-शाम आगे ही बढ़ती रही।।