हौसलों के पंख लेकर मैं सदा उड़ता रहा।
और वो, ये देखकर, मुझसे सदा कुढ़ता रहा।।
मैं तो जुगनू हूं, कहां औकात ज्यादा है मेरी।
तीरगी से फिर भी मैं लड़ता रहा, लड़ता रहा।।
न सलाहियत है मुझमें, न ही मैं फनकार हूं।
बज्म का हर शख्स फिर भी मुझसे क्यों जुड़ता रहा।।
उसकी यादों ने कभी तन्हां नहीं छोड़ा मुझे।
और वो जब भी मिला, मुंह देखकर मुड़ता रहा।।
मैंने उसकी कामयाबी की दुआ मांगी सदा।
और वो हर कामयाबी पर मेरी कुढ़ता रहा।।