राजनीति है खेल वो जिसमें, बड़े गजब के पासे!
छल के बल पर कौरव जीतें, पांडव रहें उदासे!!
दुर्योधन की द्वेष नीति, शकुनी की घटिया चालें!
कैसे धर्मराज यूधिष्ठर, अपनी लाज संभालें!!
धृतराष्ट्र के राजभवन में, कोई अंधा कोई बहरा!
खौफजदा सब दुर्योधन से, है अधरों पर पहरा!!
द्वापर से कलयुग तक, ना तस्वीर बदल कुछ पायी!
तब भी सत्ता की खातिर और, अब भी यही लड़ाई!!