…अरमान सजाए फिरते हैं

रंग-मंच सी दुनिया में, सामान सजाए फिरते हैं।
आंखें नम हैं, चेहरे पर, मुस्कान सजाए फिरते हैं।।
है सबको मालूम एक दिन, जाना है इस दुनिया से।
फिर भी जाने क्यों इतने, अरमान सजाए फिरते हैं।।

दौलत-शौहरत, बंगला-गाड़ी, साथ नहीं कुछ जाना है।
फिर भी चंचल मन को हरदम, पैसा-पैसा गाना है।।
राजा हो या रंक यहां पर, सबकी यही कहानी है।
माटी का पुतला इक दिन, माटी में ही मिल जाना है।।

सतरंगी दुनिया में आकर, मोह-माया में झूल गए।
दौलत-शौहरत मिली जरा तो, गुब्बारे सा फूल गए।।
अहंकार के वशीभूत हो, खुद को खुदा समझते हैं।
जिस ईश्वर ने जन्म दिया, उस ईश्वर को ही भूल गए।।

जीवन में सब है निर्धारित है, फिर क्यों, किससे डरना है।
जैसा कर्म किया है, वैसा, सबको ही फल भरना है।।
हानि-लाभ, जय और पराजय, जन्म-मृत्यु सब निश्चित है।
यह किराए का मकां एक दिन, सबको खाली करना है।

एक पते की बात कहूं गर, यह युक्ति पा जाओगे।
हरिवंदन कर लोगे तो, हरि की भक्ति पा जाओगे।
खुद ही मिट जाएंगी सब, विपदाएं जो हैं जीवन में।
राम-नाम के सुमिरन से, ऐसी शक्ति पा जाओगे।।

उसको अपना मीत बना लो, हर विपदा टल जाएगी।
जो भी स्वप्न सजाएं हैं वह, हर मंजिल मिल जाएगी।।
उसकी मर्जी बिना नहीं, इक पत्ता भी हिल पाता है।
भक्तिमार्ग से ही जीवन की, यह बगिया खिल जाएगी।।
-विपिन शर्मा, रामपुर✍️

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