अपनी चलती डगर से रुकेगा नहीं,
ये नए दौर का नया भारत मेरा।
धमकियों से तुम्हारी, झुकेगा नहीं,
ये नए दौर का नया भारत मेरा।।
फैसलों पर तेरे, तेरे अपने अपने हंसें,
वो समझते हैं, जोकर से किरदार सा।
तुझसे अमरीका अपना संभलता नहीं,
चौधरी, बनना चाहे तू संसार का।।
बस, बहुत हो चुका, अब सुनेगा नहीं,
ये नए दौर का नया भारत मेरा।
अपनी चलती डगर से रुकेगा नहीं….
प्यार में जान अपनी लुटाते हों वो,
प्यार की राह को छोड़ सकते नहीं।
रूस से दोस्ती थी, रहेगी सदा,
तेरे कहने से हम, तोड़ सकते नहीं।।
तेरे मन के मुताबिक चलेगा नहीं,
ये नए दौर का नया भारत मेरा।।
अपनी चलती डगर से रुकेगा नहीं…
जिस तरह पाक में तू गलाता रहा,
दाल भारत में वैसे गलेगी नहीं।
तेरी, नीति-नीयत, सब समझते हैं हम,
इसलिए, यहां तेरी, चलेगी नहीं।
तेरे टैरिफ से डरकर झुकेगा नहीं,
ये नए दौर का नया भारत मेरा।।
अपनी चलती डगर से रुकेगा नहीं…
-विपिन शर्मा, रामपुर
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